रौनकें सब हैं लेकिन वो बात नहीं है,
मेरे साथ उस आंचल की छांव जो नहीं है!
दुआ बन कर चलता है आज भी मेरे हर ग़म में,
उस मां सा कोई आशीर्वाद नहीं है !
माना कि बिखरी पड़ी हैं खुशबूएं चारों ओर,
मां की ओढ़नी सी वो सौंधी पुचकार नहीं है !
इमारत बड़ी तो है मेरे घर की बहुत,
बस ,उस आंचल सी कोई ख्वाबगाह नहीं है !
मेरे एक बोसे पर वारी-वारी जाती थी मेरी मां
उस प्यार का मेरे अब कोई खरीददार नहीं है !
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