क्यों कुबूल है ?
सातारा के जंगलों के एक वीरान खंडहर की अंधेरी , तूफानी ,तेज़ बारिश और कड़कड़ाती बिजली से थर्राती रात, जिसमें मस्तानी की जिंदगी कुछ ऐसे ठहर गई है कि भोर की कोई सूरत दूर तक नज़र नहीं आ रही है.
ऐसे में निराश दासी मस्तानी से निवेदन करती हुई कहती है कि “लगता नहीं कि तूफान थमेगा .चलिए वापिस चलते हैं बुंदेलखंड और वैसे भी यहां आकर हमें क्या मिला है?
पूना गए तो नाचने वालियों के बीच रखा| सातारा में महल के बदले नदी पार यहां रखा है, इस खंडहर में डर लगता है बाई सा , आपने जिनकी कटार से ब्याह किया है वो तो इस रिवाज़ से अंजान हैं और अगर उन्होंने ये रिश्ता कुबूल करने से इंकार कर दिया तो?”
मस्तानी इस सवाल पर ज़रा भी विचलित नहीं होती क्योंकि उसे अपने प्रेम की ताकत पर विश्वास है. उसी विश्वास के चलते वे स्वयं ही से शर्त लगा कर कहती हैं कि “हम भी तो देखें अपने इश्क का असर !”
और मस्तानी की खुशनसीबी तो देखिए कि तभी अचानक वे शर्त जीत भी जाती हैं जब उन्हें अपने इसी इश्क का असर सामने से आते पेशवा बाजीराव के रूप में दिखाई देता है जब वे इस अंधेरी ,तूफानी रात में उफनती नदी को अपने हौसलों से मात देकर मस्तानी के सामने पहुंचकर अपनी दोनों बांहें पसारकर कहते हैं ,”देख लीजिए अपने इश्क का असर. आपने भरे दरबार में पेशवा मांगा था न , पेशवा हाज़िर है.मानना पड़ेगा मस्तानी साहिबा, जिस रिवाज़ से, जिस रिश्ते से हम अंजान थे उसके लिए आप अपना सब कुछ छोड़कर चली आई! क्या है इस दीवानगी की वजह?”
मस्तानी मन ही मन बाजीराव के हौसले देखकर हैरान रह जाती हैॉ और विश्वास से भरी उनकी आँखों में आँखे डालकर सलाम करके कहती हैं “इश्क!”
और यहां वे बड़ी ही खूबसूरती से इश्क का अर्थ समझाने के लिए बाजीराव को खुद उन्ही के द्वारा मस्तानी के प्रेम के अधीन होकर उठाए गए कुछ साहसिक फैसलों की याद दिलाते हुए कहती हैं ,
“जो तूफानी दरिया से बगावत कर जाए, वो इश्क!
भरे दरबार में जो दुनिया से लड़ जाए, वो इश्क!
जो महबूब को देखे तो खुदा को भूल जाए, वो इश्क!”
बाजीराव, मस्तानी को उनके प्रति इश्क की यूं दीवानगी देखकर उन्हें इसके दुष्परिणामों से अागाह करते हुए कहते हैं कि “ये समाज,ये शनिवारवाड़ा आपको कभी नहीं अपनाएगा. हमारे साथ इश्क, मतलब अंगारों पर चलना होगा.”
मस्तानी बाजीराव की आँखों में आँखें डालकर कहती हैं “कुबूल है!”
बाजीराव फिर कहते हैं ,”हमारी पत्नी है , काशी . हम आपको पहली पत्नी का दर्ज़ा कभी नहीं दे सकते, हम सिर्फ आपके, कभी नहीं हो सकते !”
यहां मस्तानी की एक खास बात यह भी है कि वे ‘कुबूल है’ कहते हुए , बाजीराव द्वारा दिए जा रहे किसी भी तर्क पर ध्यान ही नहीं देती , उस पल मानो बाजीराव अगर मस्तानी से जान भी देने को कह देते तो वह आसानी से “कुबूल है!” कह देती!
खैर वे फिर से वही जवाब देती हैं “कुबूल है!”
बाजीराव फिर से मस्तानी को समझाने की नाकाम कोशिश करते हैं ,”हमारा नाम अपने नाम से जोड़कर आपको बदनामी के अलावा और कुछ नहीं मिलेगा.”
और मस्तानी एकबार फिर अपना वही जवाब दोहरा देती हैं कि, “कुबूल है!”
बाजीराव, मस्तानी का हाथ पकड़कर खुले आसमान के नीचे ले जाते हैं और कहते हैं ,”ये धरती , ये आसमान,ये तूफान और इस सीने की आग को साक्षी मानकर हम आज से आपको अपनी पत्नी मानते हैं!
दुनिया हम दोनों को हमेशा एक ही नाम से याद रखेगी
बाजीराव मस्तानी !”
बाजीराव मस्तानी फिल्म का यह दृश्य हमें इश्क के एक ऐसे जुनून से रूबरू कराता हैं जिस जुनून में सबकुछ कुबूल है!
तो यही है इश्क और यही है इश्क की दीवानगी !
और सही तो है , इश्क के दीवानों को एक बंधन में बांधने के लिए समाज द्वारा बनाए गए किसी रस्मों रिवाज की ज़रूरत ही कहां है ? इसमें केवल दोनों को एकदूजे को बस कुबूल करना ही काफी है !
और फिर सदियों से बस यही एक अनसुलझी पहेली रह जाती है कि इश्क में सबकुछ आखिर कुबूल हो क्यों जाता है ?
कि इस ‘इश्क’ में ~
क्यूं हँसते-हँसते हर दर्द कुबूल है ?
क्यूं सारे ज़माने, अपने-पराए की हर रुसवाई कुबूल है?
क्यूं खुशी-खुशी हर ज़ख्म कुबूल है?
क्यूं खुद की हस्ती तक मिटा देना कुबूल है?
क्यूं बेरहम समाज की हर प्रताड़ना कुबूल है?
क्यूं यह किसी भी उम्र में कुबूल है ?
क्यूं यह , कोई भी धर्म हो, कुबूल है ?
क्यूं महबूब पर जान तक न्यौछावर कर देना कबूल है ?
क्यूं दुनिया के बनाए हर रस्मो-रिवाज के बंधन तोड़ना कुबूल है ?
और आखिर में बस यही कह सकते हैं कि दो दिलों के मिलते ही जब खुदा को ही उन दोनों का यह रिश्ता कुबूल हो जाता है तो फिर हम तो मात्र प्राणी हैं !
हमारी कोई औकात नहीं जो कह सकें कि “नहीं , हमें तुम दोनों का यह रिश्ता कुबूल नही!
love #bajiraomastani #passionatelove #eternallove #deepikaranveer #kuboolhai
~Sugyata