ख़ामोश रात का अंधेरा कुछ छुपा जाता है ,
कही सिसकियाँ तो कही दर्द भरी कोई चीख़ आग़ोश में अपनी छुपा जाता है ।
सुनसान सी सड़कें और दूर -दूर तक पसरा सन्नाटा
अचानक कही से घूरती हुई दो जोड़ी हैवानी आँखें मन को अंदर तक झकझोर सा जाता है ।
खामोश चुपचाप -सा कुछ हो जाता है ,
होकर बस गुजर सा जाता है ।
कहाँ मिलता न्याय उसे
जो सहकर चुप सा रह जाता है
लड़ जाता भिड़ जाता जो अपने लिए
अनगिनत निगाहों का निशाना सा बन जाता है
आत्म- सम्मान के लिए लड़ना गुनाह सा बन जाता है ।
फिर भी लड़ा जो खुद के लिए
जीत जाता है
सवालों भरी कई निगाहें ही सही
पर जंग अपनी वो सही मायने में जीत जाता है।
अंजली व्यास