हिंदी और तख्ती
हिंदी हमारी मातृभाषा है.
आज भी मुझे याद है कि हिंदी के अक्षरों से मेरी पहली बार दोस्ती कहां हुई थी.
हिंदी के पहले अक्षर ‘अ’ की वो छवि , उसका स्पर्श , उसकी महक अभी अभी तक मेरे मन में ज्यों की त्यों ताज़ा है.
वजह है ‘तख्ती !’
तख्ती, वो जगह जहां मेरा अपनी मातृभाषा हिंदी से लिखित तौर पर पहली बार रिश्ता कायम हुआ !
तब बचपन में हम लिखना सीखने के लिए तख्ती , कलम और दवात का प्रयोग करते थे.
उस समय स्कूलों में बच्चों से सबसे पहले तख्ती पर लिखवाना शुरू किया जाता था. अध्यापक पहले पेंसिल से हल्का हल्का लिख देते फिर हम उसी पर कलम चलाया करते. लकड़ी की तख्ती के दोनों तरफ़ लिखा जाता था.
तख्ती पर लिखने के लिए सरकंडे से बनी कलम का इस्तेमाल किया जाता था .चाकू से उस कलम की नोक को अपने लेख के हिसाब से छील कर संवारा जाता था. स्याही के लिए पुड़िया में दानेदार रंग लाया करती जिसे कुछ देर गरम पानी में भिगोकर रखा जाता और घुलने पर दवात में भर लिया जाता. तख्ती पर से स्याही से लिखा मिटाने के लिए उसे रोज़ धोकर, मुल्तानी मिट्टी से पोता जाता, फिर गीत-गा गा कर झुलाते हुए सुखाया जाता .
तख्ती पर लिखने से सुलेख सुंदर हो जाता है. तख्ती लिखने का वो अहसास और महक अब भी मन में बसी हुई है.
लेकिन आज तख्ती, कलम और दवात प्राइमरी स्कूलों से बिल्कुल गायब हो गया है। लेख सुधारने के लिए ज़रूरी तख्ती, कलम और दवात आज कहीं दिखती तक नहीं .
पहले सभी बच्चों में आपस में तख्ती पर एक दूसरे से सुंदर लिखने की होड़ सी लगी रहती थी.
शिक्षा अधिकारी भी जब निरीक्षण के लिए आया करते तो सबकी तख्तियां मंगाकर , उसपर लिखे सुलेख के आधार पर सुलेख की जांच किया करते थे.
लेकिन दुख की बात है कि हाईटेक शिक्षा के चलते यह सब अब बहुत पीछे छूट गया है।
1994 के बाद से तो हर स्कूल से तख्तियां बिल्कुल ही गायब हो चुकी हैं.
मालूम किया तो पता चला कि शिक्षा विभाग की ओर से तख्ती लिखवाने पर कोई रोक नहीं लगाई लगी है.
बल्कि विभागीय अधिकारियों की ओर से आज भी कक्षा एक से पांच तक नियमित रूप से तख्ती लिखवाने के स्पष्ट निर्देश हैं। लेकिन दुर्भाग्य कि ये निर्देश केवल कागजों तक ही सीमित रह गए है।
अब कौन किसको कहे , अधिकारी व्यवस्था को या शिक्षक अधिकारियों को. लेकिन बस दुख यही कि तख्ती अब कहीं नहीं दिखती.
लेकिन लगता है कि जल्द ही शायद किसी संग्रहालय में रखी देखी जाएगी और नई पीढ़ी को बताया जाएगा कि ये देखो , पहले लोग इस तख्ती, कलम और दवात से लिखना सीखना शुरू किया करते थे.
वैसे जहां तक आजकल की हाइटेक शिक्षा की बात है न , तो आपको बताना ज़रूरी समझती हूं कि आज जब भी कोई हिंदी पर मेरी अच्छी पकड़ , मेरे सुलेख और टाइपिंग स्पीड की तारीफ करता है न , तो मैं मन ही मन उसका सारा श्रेय अपनी बचपन वाली हिंदी की पहली दोस्त ‘तख्ती’ को ही देती हूं !
‘हिंदी दिवस पर और क्या लिखूं क्या न लिखूं
मेरी दोस्त ‘ मेरी तख्ती’ तू ही बता ,
आज तुझे याद न करूं तो और क्या करूं ?’
~Sugyata