होस्टल वाली लड़की के भगवान
जहां मंदिरों की भव्य साज-सजावट , मूर्तियों का दिव्य श्रंगार और उनपर चढ़े सोने-चांदी के आभूषणों को देख आँखे चौंधिया जाती हैं और फिर उसकी चर्चा कर मन में भगवान के प्रति भक्ति भाव जागृत करने की चेष्टाएं की जाती हैं ,वहां अपने परिवार और घर से दूर, होस्टल के टू-सीटर रूम में रहने वाली किसी स्टूडेंट या वर्किंग गर्ल के जैसे -तैसे , एक छोटी सी जगह में सहेज कर रखे गए भगवान और उनसे अपना हर सुख-दुख साझा कर , मन्नत मांगकर उन्हें पूरा करवाने की आस रखने वाली उस लड़की की आस्था शायद अपनी-अपनी जगह होती है..
क्योंकि ईश्वर तो सच में ही भावों के भूखे होते है न !
आज महानगरों में न जाने कितनी ही ऐसी लड़कियां हैं जो अपने खूबसूरत और सुविधासंपन्न घरों से दूर ऐसी ही छोटी सी जगहों में अपनी अस्थाई घर बनाकर रहती हैं!
और सुबह से शाम तक न जाने अकेले ही कितने काम और जिम्मेदारियां पूरी किया करती हैं , फिर भी सुबह जब घर से निकलती हैं और शाम ढले घर लौटती हैं तो धूप-दीप करना नहीं भूलती.
शायद यही हैं वो संस्कार जो कहीं न कहीं हमारे भीतर रचे-बसे रहते हैं और फिर चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों कभी बदला नहीं करते!
और मुझे पूरा विश्वास है कि बिना किसी साज-सजावट के ,होस्टल के इस टू-सीटर रूम में बैठे , केवल भावों के भूखे भगवान इन होस्टल वाली लड़कियों की हर मनोकामना पूरी तो अवश्य ही करते होंगे !
~Sugyata