मेरे शोना
जब उस दिन अचानक तुम बिन कुछ कहे चले गए तो ..
हां , मैं थोड़ा बिखरी तो थी…
लेकिन आज मेरा सबसे बड़ा संबल तुम ही हो जो हर कदम पर मेरे साथ चल रहा है !
तुम्हारी नेहा
(कविता संजय गिरी जी को समर्पित)
सैलाब
उलझनों के समंदर में सैलाब सा यूं चल रहा।
बेचैनियों के मनपटल पर, तूफान सा है उठ रहा।
खड़ी हूं जिस चौराहे पर, चुनौतियां बिखरी पड़ी
जूझना है इन सभी से, संकल्प मन अब कर रहा।
मास दिवस सब चल दिये, बिन तुम्हारे प्राण अब
हो साथ मेरे रूह से तुम, हर क्षण गुमा ये आ रहा।
विचलित कभी होंगी न मैं, विश्वास मेरा तुम करो
सांसों में मेरे एक समंदर, उफान लेकर चल रहा।
वक्त की अनगढ़ कहानी, अब पहेली बन गयी है
जागती आंखों से जैसै ख्वाब कोई जा रहा।
तूफान ये भारी है देखो, क्या उड़े और क्या बचे
सैलाब की मौजें समेटे, वक्त कैसै जा रहा।
सोचती हूं फिर यही, हिम्मत मेरी तुम्हीं से है
घेरे मुझे बांहों में देखो, ख्वाब तेरा आ रहा।
तुम नहीं हो साथ मेरे, मान कैसे लूं भला
अहसास तेरे साथ का, हर पल गवाही दे रहा।
पर प्रिय मान तू विश्वास कर, हारूंगी न मैं कभी
सैलाबों को चीरने का हौंसला तू दे रहा।
नेहा
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