घर के भीतर
काँच के घर में तैरती मछली
एकटक मुझे देखा करती है,
मैं एकटक मछली को देखा करती हूं!
वो हैरान मैं बिन पानी कैसे रहती हूं !
मैं हैरान वो उम्रभर पानी कैसे सहती है ?
वो खुली आँख से सोती है
मैं बंद आँख भी जगती हूं,
मरकर उसकी खुली आँख
मेरी नींदों में सोती है !
मैं उसके भीतर रोती हूं
वो मेरे भीतर सोती है!
हम सबके मन के
काँच के भीतर
एक सुंदर मछली होती है!