हर ताड़ के पीछे तिल बराबर कविता सोती है, हर तिल के पीछे ताड़ बराबर कविता जगती है! तिल का ताड़ बनाकर कईबार कविता रोती है ताड़ का तिल बनाकर अचानक कविता हँसती है! कभी ताड़ में तिल तो कभी तिल में ताड़ बस कुछ ऐसे ही कविता होती है! 0 Reviews Write a Review Submit ReviewShare This